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हिंदुत्व: भारतीय संस्कृति और राजनीति की विचारधारा का उत्थान और आलोचना

**हिंदुत्व: एक गहन विश्लेषण**

 

 

 

 

 

हिंदुत्व एक ऐसा विचारधारा है जो भारतीय समाज, संस्कृति और राजनीति के कई पहलुओं को प्रभावित करती है। यह शब्द मूल रूप से हिंदू धर्म के सांस्कृतिक और धार्मिक परिप्रेक्ष्य से जुड़ा हुआ है, लेकिन समय के साथ इसे एक राजनीतिक और सामाजिक विचारधारा के रूप में भी प्रस्तुत किया गया है। हिंदुत्व की विचारधारा का प्रमुख उद्देश्य हिंदू संस्कृति और सभ्यता की रक्षा करना है। इस लेख में हम हिंदुत्व के ऐतिहासिक संदर्भ, इसके विकास, प्रमुख विचारकों और इसके समकालीन प्रभावों का विश्लेषण करेंगे।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

1. **हिंदुत्व का अर्थ और उत्पत्ति**

 

 

 

 

 

 

हिंदुत्व शब्द का जन्म 19वीं शताब्दी के अंत में हुआ था, और इसका पहला उपयोग **सावरकर** (Veer Savarkar) द्वारा किया गया था। लेकिन यह हिंदू धर्म, संस्कृति और सभ्यता के संदर्भ में भारतीय समाज में पहले से मौजूद था।

 

 

 

 

 

 

 

1.1 **हिंदू धर्म और हिंदुत्व में अंतर**

 

 

 

 

 

हिंदू धर्म एक धार्मिक प्रणाली है, जबकि हिंदुत्व एक सांस्कृतिक और राष्ट्रीय विचारधारा है। हिंदू धर्म के अनुयायी न केवल भारत में, बल्कि विश्वभर में हैं, और यह एक विश्वव्यापी धार्मिक पहचान है। दूसरी ओर, हिंदुत्व भारतीय उपमहाद्वीप के सांस्कृतिक और राष्ट्रीय संदर्भ में एक परिभाषित विचारधारा के रूप में उभरी।

 

 

 

 

हिंदुत्व विचारधारा का मुख्य उद्देश्य एक साझा सांस्कृतिक पहचान, भारतीय सभ्यता की रक्षा और राष्ट्रवाद की भावना को प्रेरित करना है। इसे “हिंदू राष्ट्रवाद” के रूप में भी देखा जाता है, जो भारतीय सभ्यता और संस्कृति को एक संप्रभु राष्ट्र के रूप में प्रस्तुत करने का प्रयास करता है।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

1.2 **विनायक दामोदर सावरकर का योगदान**

 

 

 

 

 

 

हिंदुत्व शब्द और विचारधारा को सावरकर ने 1923 में अपने प्रसिद्ध ग्रंथ *”हिंदुत्व: Who is a Hindu?”* में विस्तृत रूप से परिभाषित किया। उन्होंने हिंदुत्व को केवल एक धार्मिक विश्वास से परे एक सांस्कृतिक और राष्ट्रीय आंदोलन के रूप में प्रस्तुत किया। उनका मानना था कि हिंदुत्व की परिभाषा को केवल धर्म तक सीमित नहीं किया जा सकता, बल्कि यह भारतीय संस्कृति, परंपराओं और जीवनशैली का प्रतिनिधित्व करता है।

 

 

 

 

 

 

 

सावरकर के अनुसार, “हिंदुत्व” का मतलब केवल हिंदू धर्म के अनुयायी होना नहीं है, बल्कि यह एक सांस्कृतिक एकता, सभ्यता और राष्ट्रीयता की भावना का प्रतीक है। उनके अनुसार, हिंदुत्व का एकमात्र उद्देश्य भारतीय भूमि पर हिंदू संस्कृति और परंपराओं का संरक्षण और संवर्धन करना था।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

2. **हिंदुत्व का ऐतिहासिक संदर्भ**

 

 

 

 

 

 

 

हिंदुत्व की विचारधारा का ऐतिहासिक संदर्भ भारतीय समाज और राजनीति में गहरे बदलावों से जुड़ा हुआ है। ब्रिटिश शासन के दौरान भारतीय समाज में हिंदू पहचान और संस्कृति को चुनौती दी गई, और भारतीय राष्ट्रीयता के रूप में एक अलग राजनीतिक आंदोलन उभरा। इस दौरान हिंदुत्व विचारधारा ने भारतीय समाज में एक सांस्कृतिक प्रतिरोध की भावना को जन्म दिया।

 

 

 

 

 

 

2.1 **ब्रिटिश उपनिवेशवाद और हिंदुत्व**

 

 

 

 

 

 

 

 

ब्रिटिश शासन ने भारतीय समाज और संस्कृति को न केवल आर्थिक रूप से दबाया, बल्कि सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी भारतीय पहचान पर आक्रमण किया। ब्रिटिश शासन के दौरान भारत में पश्चिमी विचारधाराओं और धर्मों का प्रभाव बढ़ा, जिससे हिंदू समाज को अपनी सांस्कृतिक अस्मिता और पहचान को बचाने की आवश्यकता महसूस हुई।

 

 

 

 

 

इस समय में **आर्य समाज** और **हिंदू महासभा** जैसे संगठनों ने हिंदू संस्कृति और धार्मिक परंपराओं के संरक्षण के लिए प्रयास किए। सावरकर का हिंदुत्व विचारधारा इस संदर्भ में एक सांस्कृतिक प्रतिरोध के रूप में उभरा, जिसने हिंदू समाज को एकजुट करने का प्रयास किया।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

2.2 **स्वतंत्रता संग्राम में हिंदुत्व का योगदान**

 

 

 

 

 

 

स्वतंत्रता संग्राम में भी हिंदुत्व की भूमिका महत्वपूर्ण रही। हालांकि महात्मा गांधी और जवाहरलाल नेहरू जैसे नेताओं का ध्यान मुख्य रूप से **सांप्रदायिक एकता** और **आध्यात्मिक राष्ट्रवाद** पर था, वहीं सावरकर और अन्य हिंदू महासभा के नेता एक ऐसे राष्ट्रीय आंदोलन की ओर अग्रसर थे, जिसमें हिंदू संस्कृति और सभ्यता की रक्षा की बात की जाती थी।

 

 

 

 

हिंदुत्व ने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान एक सांस्कृतिक प्रेरणा दी और हिंदू समाज को एकजुट करने का का

 

 

र्य किया। इसके अलावा, यह आंदोलन भारतीय राष्ट्रीयता को एक हिंदू दृष्टिकोण से देखने की कोशिश करता था, जो बाद में भारतीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण विचारधारा बन गई।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

3. **हिंदुत्व के प्रमुख विचारक और उनके योगदान**

 

 

 

 

 

 

 

हिंदुत्व की विचारधारा के विकास में कई प्रमुख विचारकों का योगदान रहा है। ये विचारक न केवल भारतीय समाज को प्रभावित करने वाले थे, बल्कि उन्होंने भारतीय राजनीति और संस्कृति के लिए नए दृष्टिकोण प्रस्तुत किए।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

3.1 **विनायक दामोदर सावरकर**

जैसा कि पहले बताया गया, सावरकर हिंदुत्व के सबसे प्रमुख विचारक थे। उनका योगदान न केवल धार्मिक और सांस्कृतिक था, बल्कि राजनीतिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण था। उन्होंने हिंदुत्व को एक राष्ट्रीय आंदोलन के रूप में प्रस्तुत किया और भारतीय सभ्यता के लिए एक साझा सांस्कृतिक पहचान की आवश्यकता को महसूस किया।

 

 

 

 

 

 

3.2 **लालकृष्ण आडवाणी और भगवद गीता**

 

 

 

 

 

लालकृष्ण आडवाणी ने 1990 के दशक में **रामजन्मभूमि आंदोलन** के माध्यम से हिंदुत्व को एक प्रमुख राजनीतिक और सांस्कृतिक मुद्दे के रूप में प्रस्तुत किया। आडवाणी के नेतृत्व में भाजपा ने हिंदुत्व को अपनी विचारधारा के रूप में प्रस्तुत किया, जो भारतीय राजनीति में एक नया मोड़ था।

आडवाणी के अनुसार, हिंदुत्व केवल एक धार्मिक विचारधारा नहीं है,

 

 

 

 

 

 

 

बल्कि यह भारतीय राष्ट्र की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक पहचान का हिस्सा है। उन्होंने हिंदू धर्म और संस्कृति को भारतीय राजनीति में एक केंद्रीय स्थान दिलवाने की कोशिश की।

 

 

 

 

 

3.3 **गोलवलकर (Guru Golwalkar)**

गोलवलकर, जिन्हें गोलवलकर जी के नाम से भी जाना जाता है, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के प्रमुख विचारक थे। उन्होंने भारतीय समाज के पुनर्निर्माण के लिए हिंदुत्व को एक आधार माना। गोलवलकर का मानना था कि हिंदू समाज में एकता और अखंडता लाने के लिए हिंदुत्व विचारधारा का पालन किया जाना चाहिए।

 

 

 

 

 

गोलवलकर के दृष्टिकोण में हिंदुत्व को केवल हिंदू धर्म के रूप में नहीं, बल्कि एक राष्ट्रवादी विचारधारा के रूप में प्रस्तुत किया गया था, जो भारत की सामाजिक और सांस्कृतिक धारा को मजबूत करने का कार्य करता है।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

4. **हिंदुत्व और राजनीति**

 

 

 

 

 

 

 

 

 

हिंदुत्व विचारधारा का भारतीय राजनीति पर गहरा प्रभाव पड़ा है। 1980 और 1990 के दशक में जब भाजपा (भारतीय जनता पार्टी) ने अपने राजनीतिक एजेंडे में हिंदुत्व को शामिल किया, तब इस विचारधारा ने भारतीय राजनीति में नए आयाम जोड़े। भाजपा ने अपने राजनीतिक सिद्धांत में हिंदुत्व को केंद्रीय भूमिका दी, और इसके कारण भाजपा को व्यापक समर्थन मिला।

 

 

 

4.1 **रामजन्मभूमि आंदोलन**

 

 

 

 

 

1990 के दशक में **रामजन्मभूमि आंदोलन** ने हिंदुत्व को राजनीति में एक केंद्रीय मुद्दा बना दिया। इस आंदोलन ने भारतीय समाज में हिंदू एकता की भावना को जगाया और साथ ही भारतीय राजनीति में हिंदुत्व की प्रभावशाली भूमिका को स्थापित किया।

 

 

 

 

 

 

रामजन्मभूमि आंदोलन के बाद भाजपा ने अपनी शक्ति को और बढ़ाया और हिंदुत्व को अपनी राजनीतिक विचारधारा के रूप में प्रस्तुत किया। इससे भाजपा को राष्ट्रीय स्तर पर बड़ी सफलता मिली, और 1996 में पार्टी ने केंद्र सरकार में प्रवेश किया।

 

 

 

 

 

4.2 **ध्रुवीकरण और साम्प्रदायिक राजनीति**

 

 

 

 

 

 

हिंदुत्व को लेकर भारतीय राजनीति में साम्प्रदायिक तनाव भी उत्पन्न हुआ है। कुछ आलोचकों का कहना है कि हिंदुत्व ने भारतीय समाज में विभाजन को बढ़ावा दिया है। भारतीय राजनीति में हिंदुत्व की विचारधारा ने कुछ मुस्लिम और अन्य धार्मिक समुदायों के बीच असुरक्षा की भावना पैदा की।

 

 

 

 

इसके बावजूद, हिंदुत्व समर्थकों का कहना है कि यह एक सांस्कृतिक पुनर्निर्माण का प्रयास है, जो भारतीय सभ्यता को मजबूत बनाने के लिए जरूरी है।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

5. **हिंदुत्व का समकालीन प्रभाव और आलोचना**

 

 

 

 

 

 

 

आज के दौर में हिंदुत्व विचारधारा का प्रभाव भारतीय राजनीति में व्यापक रूप से देखा जा सकता है। भाजपा और RSS जैसे संगठन इस विचारधारा को बढ़ावा देते हैं। लेकिन इसके साथ ही इस विचारधारा की आलोचना भी की जाती है। आलोचकों का मानना है कि हिंदुत्व का स्वरूप समावेशी नहीं है और यह भारतीय समाज की विविधता को खतरे में डाल सकता है।

 

 

 

 

वहीं, समर्थकों का कहना है कि हिंदुत्व केवल एक धार्मिक नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक और राष्ट्रीय दृष्टिकोण है, जो भारतीय समाज को एकजुट करता

है।

 

 

 

 

 

 

निष्कर्ष

 

 

 

 

 

 

हिंदुत्व एक विचारधारा है जो भारतीय राजनीति और समाज को प्रभावित करने वाली ताकत बन चुकी है। इसके ऐतिहासिक संदर्भ, विचारक, और राजनीतिक प्रभाव ने इसे एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक और राजनीतिक मुद्दा बना दिया है। हालांकि हिंदुत्व के समर्थकों और आलोचकों के दृष्टिकोण में अंतर है, यह नकारा नहीं जा सकता कि यह विचारधारा भारतीय राजनीति में एक केंद्रीय स्थान रखती है। भविष्य में हिंदुत्व की दिशा और इसके प्रभाव का निर्धारण भारतीय समाज और राजनीति की सामाजिक-सांस्कृतिक स्थिति पर निर्भर करेगा।

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